Monday, November 12, 2012

[IAC++] आईएसी किसका?

आईएसी किसका?
 
- Devesh Shastri
 
प्रायः किसी पार्टी या संगठन का जब भी विभाजन होता है तो सभी गुट खुद को असली बताकर परस्पर लड़ते हुए अपनी रोटियां सेंकते रहे हैं। उसी दौर से इंडिया अगेंस्ट करप्शन गुजर रहा है। सवाल उठता है कि आईएसी है किसका? यह सवाल ही निरर्थक है, क्योंकि यह जो संगठन माना जा रहा है, वह संगठन है ही नहीं।
देश भर के तमाम संगठनों, ग्रुपों व एनजीओज को भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकीकृत करने की प्रक्रिया यानी आंदोलन को नाम  दिया गया था इंडिया अगेंस्ट करप्शन। 27 अप्रेल 2011 को दिल्ली में देश भर के कोआर्डीनेटरों की मीटिंग में इंडिया अगेंस्ट करप्शन को सांगठनिक स्वरूप देने पर चर्चा हुई थी, जिसे नकार दिया गया था। यदि संगठन बना दिया तो सारे ग्रुप व संगठन विफर जायेंगे। जनभावना पर के� ��द्रित आंदोलन पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता। मौजूदा अन्ना-ग्रुप भाजपा को साथ लेकर चलना का पक्षधर है, जैसा प्रतीत होता है। जबकि  केजरीवाल ग्रुप समूची सियासी जमात को निशाने पर लेकर अपनी नई सियासी पारी खेल रहा है। जैसे आजादी के बाद गांधी जी ने कांग्रेस खत्म करने की इच्छा जताई थी, आज इंडिया अगेंस्ट करप्शन को खत्म करने की जरूरत है। स्वतंत्रता आंदोलन विविध तरीकों से चला और उसे जं ग-ए-आजादी नाम दिया गया। 90 साल की जंग में नायक कोई नहीं रहा, नरम व गरम दल के रूप में कितनी धारायें थीं, वैचारिक मतभिन्नता के बावजूद लक्ष्य ने नहीं भटका भारतीय जनमानस। आज ‘‘जंग-ए-ईमान’’ में भटक रहे, विभिन्न धाराओं  के नायक, आखिर क्यों? इंडिया अगेंस्ट करप्शन पर दावेदारी और केजरीवाल का ‘आईएसी’ से अनासक्ति भाव लक्ष्यवेध में कौन्तेय अर्जुन के चिंतन को परिभाषित करता है। जबकि � �ंदोलन को सांगठनिक रूप देना भटकाव का मूल कारण बनेगा।
 
-देवेश शास्त्री

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