*भक्तिकाल क्या है*
भक्तिकाल 15वीं शताब्दी में आई एक छोटी सी आंधी थी जिसमे देश के कुछ संतो ने मुगल काल मे भी धर्म को बचाये रखा।
लेकिन ये छोटी आंधी तब गुमनाम हो गयी जब भारत मे 1200 साल की गुलामी के बाद बस एक ही वीर पैदा हुआ जिसका नाम था *नरेंद्र दामोदर दास मोदी*
मोदी जी के भक्तों ने उस काल मे ऐसा कुटियापा काट दिया कि उसे भक्तिकाल के नाम से जाना जाने लगा।
*भक्तिकाल की विशेषताएँ बताये*
इस काल मे देश ने अचानक से विकास करना शुरू कर दिया
2014 से पहले तक भूखो नंगो, सपेरों लुटेरों का देश भारत अचानक ही 2014 के मध्य से विकासहीन से विकासशील देशों की सूची में पहुंच गया।
कल तक जिस भारत मे पीने का पानी तक नही था, सड़के नही थीं रेलवे लाइन नही थी, मेट्रो नही थी, हवाई अड्डे नही थे आज उस देश मे ये सब सुविधाएं माननीय मोदी जी के कारण पहुंच गई थी।
देश बुलेट ट्रेन के काल में पहुंच चुका था।
*भक्तिकाल में भक्तो का क्या योगदान रहा*
इस काल मे भक्तो ने भक्ति को नए आयाम तक पहुंचा दिया जिसे देखकर प्राचीन समय के बड़े बड़े भक्त भी चुल्लू भर पानी मे डूब मरे।
इस काल से पहले FDI, आधार कार्ड, मनरेगा, परमाणु सन्धि, 2014 की कांग्रेसी नोटबन्दी आदि का विरोध करने वाले मोदी जी ने आते ही धीरे धीरे सब लागू करवा दिया और इसमें सबसे बड़ा योगदान भक्तों का था।
भक्तों ने मोदी जी के खिलाफ बोलने वाले हरेक व्यक्ति के पिछवाड़े में मिर्ची ठूस कर उसकी बोलती बंद करवा दी।
1 सैनिक के बदले 10 सैनिको के सिर काटने की बात करने वाले मोदी के राज में मनमोहन सिंह के काल की तुलना में 5 गुना अधिक सैनिक मारे गए।
पाकिस्तान को लव लेटर लिखने की बात करने वाले पीएम खुद पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ के आगे नतमस्तक हो गए।
पिंक रेवोल्यूशन पर बोलने वाले पीएम ने आते ही भारत को विश्व का सबसे बड़ा बीफ एक्सपोर्टर देश बना दिया और गौरक्षकों को गुंडा बता कर देश के गौतस्करों को राहत की सांस दी।
भक्तों ने भी सुर में सुर मिलाते हुए गौरक्षकों को गुंडा बताने हेतु रात दिन एक कर दिए।
दलितों की राजनीति करके देश के हिन्दुओ को बांटने वाले पीएम का भक्तों ने हर मोड़ पर साथ दिया।
राममंदिर बनाएंगे पर तारीख न बताने वाले संघ भाजपा की आंखों के नूर मोदी जी ने देश भर में केंद्रीय और राज्य के चुनावों की किसी भी रैली में कभी भी *जयश्रीराम* नही कहा और भक्त इसे भी नज़रंदाज़ कर रहे।
*केवल कूटनीति के कुटियापे में।*
देश मे रोजाना मर रहे किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया और उनके काल मे कृषि विकास दर शून्य से नीचे -3 % चली गयी लेकिन भक्त हर बात को सही प्रमाणित करके जनता का *"C"* काटते रहे।
*ये भक्त ही थे*
जिन्होंने किसानों को किसान मानने से ही इनकार कर दिया क्योंकि वे जींस पहनते थे।
*ये भक्त ही थे* जिन्होंने हर बात में विरोधियों की हर चाल को पलट कर जनता के बीच मोदी जी की छवि अच्छी बनाये रखी।
*ये भक्त ही थे* जिन्होंने जुबानी जंग से पाकिस्तान और चीन की सेना के छक्के छुड़ा दिए ।
*भक्तिकाल का कालखंड कितना बड़ा है*
2002 के दंगों के बाद से भक्तिकाल का आरम्भ हुआ था जो अभी तक चल रहा है। 2002 के दंगों में सैकड़ो हिन्दुओ पर गोली चलवाने वाले और कई दर्जन हिन्दुओ पर मुकद्दमे चलाने वाले मोदी रातों रात भक्तो के अल्लाह बन गए।
जबकि पहले देश मे कई दंगे हुए पर किसी मे हिन्दुओ पर मुकद्दमे नही चले थे।
सितम्बर 2013 में आडवाणी को लात मार कर पीएम दावेदारी हड़पने वाले मोदी ने भक्तो की हर इच्छा के विरुद्ध काम किया पर भक्तो ने उन्हें सिर पर बिठा कर मूतने का पूरा समय दिया।
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का *"C"* काटने में मोदी ने कोई कसर बाकी न छोड़ी, *बेचारों को राष्ट्रपति भवन में बुला बुला कर उनकी लगातार बची खुची बेज़्ज़ती भी खराब की गई।*
परमाणु सन्धि का जबरदस्त विरोध करने वाले मोदी जी ने भक्तों के मुंह में जबरदस्त तमाचे मारते हुए अपने परम अमेरिकन मित्र *बराक* ओबामा को चाय पिलाकर परमाणु सन्धि की राष्ट्रहित वाली शर्तों को हटा कर आगे बढ़ाया और *देश को एक नही अपितु बहुत सी "भोपाल गैस कांड" जैसी विभीषिका के मुंहाने पर ले जा खड़ा किया।*
भक्त केवल हिन्दू मुसलमान में ही बहते रहे और पीछे पीछे उनके राष्ट्रजुमला *जुमलाादास* जी जुमलों पर जुमले मारते रहे और सबका एक बहुत बड़े वाला *"C"* काटते रहे।
भक्तिकाल का सबसे अच्छा समय तब रहा जब तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी जी को देश का पीएम बनने में लिए भक्तो ने मुहिम का श्रीगणेश किया।
इस मुहिम में सबसे पहले उनका साथ देने वाले नीतीश कुमार को भक्तों ने *आब-ए-ज़मज़म* पीपी कर कोसा।
*इस काल में भक्तों द्वारा फेसबुक पर इतनी फोटो और पोस्ट चिपकाई गईं कि सर्वर स्पेस बढ़ने से मार्क जुकरबर्ग का भी बीपी अचानक से बढ़ गया था।* अंततः भक्तों ने मोदी-नीतीश की चाल को पूर्ण रूपेण सफलता दिलाई।
अंत में सब चालें ठीक ठाक पड़ने पर 2017 में उनका स्थान विशेष सहलाते हुए पुनः एनडीए में सम्मान के साथ स्थान दिया।
भक्तों ने उनका *इशरत के अब्बू* वाला दाग स्वयं धो दिया।
2010 में विपक्ष द्वारा हाइब्रिड बीटी-बैंगन का विरोध करने वाले भक्तों ने कभी भी मोदी सड़कार द्वारा थोक के भाव जीएम फसलों को पास करने का कभी कोई विरोध नही किया, अपितु तर्क यह दिए गए कि इससे भुखमरी कम होगी।
गौरक्षा के नाम पर सरकार बनाने वाले प्रधान चौकीदार ने सैनिकों को दूध वितरण करने वाली 39 गौशालाओं को भी बन्द करवा दिया।
भक्तिकाल के इस अश्रुपूरित समय में भक्तों ने पुनः मोदी जी का यह कहकर रक्षण किया कि सभी गौशालाओं में जर्सी, अमेरिकन गायें हैं।
*यह वही भक्त थे*
जिन्होंने बीजेपी सरकारों द्वारा गौसंवर्द्धन और इस्ल सुधार हेतु इज़रायल के सांडों द्वारा उनके गर्भादान पर पूरे 3 वर्ष तक मौन साधा रहा।
भक्तिकाल का स्वर्णिम समय तब आया जब नोटबन्दी हुई, भयंकर त्रासदी की इस विभीषिका में गरीबों की हालत दयनीय थी, सैकड़ों लोगों ने आत्महत्यायें कीं और सैकड़ों बैंकों की लाइनों में खड़े हो गए।
बैंककर्मी उस दिन को कोसने लगे जब उन्होंने बैंक की नौकरी join की थी।
अंततः *भक्तों के फेविकोल जैसे मजबूत जोड़* ने नोटबन्दी जैसे महा घोटाले से मोदी जी का रक्षण किया और देश को उस मुकाम पर पहुंचा दिया जहां कोई *कालाधन और 15 लाख* का नाम सुनकर भी कांपने लगते थे।
भक्तिकाल के इस रत्नमयी युग में अब कोई काले धन और 15 लाख का नाम भी नही लेता, *जित्ते बच गए, वही बहुत हैं* की सोच लिए अब देश विकास को ढूंढने फिर निकल पड़ा, जो एकदिन चंडीगढ़ में धर दबोचा गया।
भक्तिकाल के इस युग में हर मोड़ पर भक्तो ने मोदी जी का साथ देकर 2014 में फ्री में उनके लिए प्रचार करके उन्हें देश का सिंहासन दिया।
वो बात अलग है कि मोदी जी ने कुछ भक्तो के साथ सेल्फी खींच कर उनके मन की मुराद पूरी कर दी।
भक्तिकाल की सबसे बड़ी विडम्बना यह रही कि भक्त समाज यह कभी नही समझ पाया कि केजरीवाल, किरण बेदी और अन्ना हज़ारे से बड़े भक्त वे कभी नही बन पाए।
बस वह अपनी सारी खीझ हिंदुत्ववादी मित्रों को ही कांग्रेसी, आपिया, मुल्ला, गद्दार, देशद्रोही, पाकिस्तानी आदि कहकर निकाल लेते थे और भक्तिमयी वैचारिक मैथुन का शीघ्रपतन कर डालते थे।
मोदी जी ने अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों के पिछवाड़े जख्मों से भर दिए परन्तु भक्त इतनी विषम परिस्थितियों में भी एक सुर में गाना गाते रहे ... *"मैं फिर भी तुमको चाहूंगा।"*
On Jan 23, 2018 11:06 AM, "Pramod Yadava" <pkyadava1953@gmail.com> wrote:
मैं आपकी बातों से सहमत हूँ. क्या यह स्थिति कभी नहीं बदलेगी? यह आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है। इसपर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।प्रमोद यादव2018-01-21 22:28 GMT+05:30 Ghulam kundanam <ghulam.kundanam@gmail.com>:गुलाम हो चला देश
…………………………
चुनाव आयोग, सतर्कता आयोग,
सूचना आयोग सहित
कई संवैधानिक पदों पर
और संवैधानिक संस्थाओं में भी
गुलाम बैठाए जाने लगे हैं।
जो संविधान को सरकार में बैठे
दल के हिसाब से
परिभाषित और अवतरित करने लगे हैं।
अब बताने की जरूरत नहीं रही
कि कई मिडिया घराने भी
सत्तारुढ़ दल की गुलामी पर
मजबूरन उतरने लगे हैं।
इन सारे गुलामों की मदद से
जनता को गुलाम बनाकर
सत्तादल देश में घुम घुम कर
लोकतंत्र को छलने लगे हैं।
एक बार फिर से देश
गुलाम हो चला है,
राजतंत्र के नए अवतार
दलतंत्र के दस्यु गिरोहों का,
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
Õm - Õnkār - Allāh - God…..
ॐ - ੴ - الله - † …….
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!
- ग़ुलाम कुन्दनम्
(Ghulam Kundanam).
21/01/2018
नोट:- इस रचना में दिए गए विचारों को व्यव्हार में मैंने अपने हाथों से
तोला है, अजमाया है। 2010-11 से लेकर अब तक मेरा कई संस्थाओं से पाला
पड़ा। उन्हीं अनुभवों और वर्तमान परिदृश्यों की प्रतिछाया है यह रचना ।
कांगेस सरकार में भी यह सब होता था और भाजपा सरकार में तो उससे भी ज्यादा
हो रहा है।
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--Pramod Yadava, Professor & Former Dean, School of Life Sciences, Jawaharlal Nehru University, New Delhi 110067, INDIA
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