Tuesday, December 31, 2013
Re: [IAC#RG] URGENT PUBLIC GRIEVANCE :Notice of Death of consumer by Set Top Box
I followed this up, and the TRAI got the I&B Ministry to issue some
advts in leading newspapers that MSOs were to fit only ISI/BIS
compliant STBs.
The problem of course is always that Govt is quick to pass
laws/instructions (like 50% bijli tariff reduction) but poor when it
comes to giving citizens a mechanism for enforcement when it is not
done.
Sarbajit
On 12/31/13, Gaur J K <gaurjk@hotmail.com> wrote:
> 31/12/13
>
> Mr. S. Roy
>
> Any progress regarding complaint of Set top boxes to TRAI?
>
> The cable operators are turnig a deaf ear on complaints regarding non
> functioning of boxes supplied by them
> Regds
>
> JKGaur
Re: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
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Date: Tue, 31 Dec 2013 11:10:27
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Subject: RE: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli
Kaslee and Arun Tiwari
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Re: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
i Wish all
Very colorful & Prosperous
New Year 2014
MAY THE COMING YEAR BRING YOU
GOOD HEALTH, JOY, PEACE & PROSPERITY
With best regards,
PROF. C. UPENDER RAO,
JNU, NEW DELHI
Dear sirI donot agree with you. Future will tell the truth. You may be aware that Indira Gandhi created Bhinderwala and the same was responsible for blue star operation. In view of this, it better to wait & watch. In politics, everything is possible. Friends become enemy & vice versa.Dr N C Jain30-12-13
On Tuesday, December 31, 2013 4:15 AM, Anuj Agrawal <dialogueindia.in@gmail.com> wrote:
Respected Friends
NUTAN VARSH ABHINANDAN.
An analysis on AAP.
If you find justified. please read, react and disseminate.
दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
---------------------------
Anuj Agarwal
National coordinator
Maulik Bharat
http://www.maulikbharat.org/
Mob. : 9811424443
--
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Anuj Agrawal, Editor Dialogue India
http://www.dialogueindia.in/
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PROF. C. UPENDER RAO,
SPECIAL CENTRE FOR SANSKRIT STUDIES,
JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY,
NEW DELHI 110067
Re: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
bjp /congress is hvng same economic policy & polity structure
congress me pariwarwad ki chhaya hai to bjp me sangh parirwar wad ki
chhya bhrashtachar me dono lipt hai fark kaha hai mp/gujrath
,maharashtra aur karnatak me bjp ka corruption kam nahi hai 19/20 ka
fark hai
On 12/31/13, Akalpita Paranjpe <akalpitap@gmail.com> wrote:
> Dear Anuj
> आपके अनलेसिस के लिये धन्यवाद . क्या आप भाजपा से जुडे हुये है या एक सशक्त
> परिवर्तन लन चाहेंगे ये स्पष्ट किजिये . यह बात अब त्य है कि सभी पर.परिक
> राजनैतिक द्लो.से जनता उब गयी है . अगर एक सशक्त पयार्य देनेका आपका प्रयास
> है तो कृपया संपर्क किजिये।
>
> अकल्पिता
>
>
>
> 2013/12/30 Anuj Agrawal <dialogueindia.in@gmail.com>
>
>>
>> Respected Friends
>>
>> NUTAN VARSH ABHINANDAN.
>>
>> An analysis on AAP.
>> If you find justified. please read, react and disseminate.
>>
>> दो सभ्यताओं का संघर्ष
>> च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
>> गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
>> जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
>> है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
>> समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
>> पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
>> दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
>> समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
>> भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
>> पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
>> वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
>> 'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
>> मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
>> दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
>> ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
>> स्पष्ट हो चुका है।
>> पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
>> को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
>> संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
>> तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
>> निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
>> पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
>> की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
>> पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
>> शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
>> वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
>> आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
>> गया।
>> कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
>> और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
>> भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
>> भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
>> प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
>> सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
>> ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
>> मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
>> तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
>> के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
>> कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
>> पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
>> बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
>> सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
>> जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
>> था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
>> निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
>> दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
>> आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
>> 'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
>> की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
>> करना रणनीति के तहत है।
>> कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
>> 'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
>> आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
>> पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
>> की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
>> जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
>> केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
>> पाये हैं।
>> मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
>> भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
>> विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
>> विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
>> भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
>> मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
>> वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
>>
>> आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
>> लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
>> संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
>> पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
>> देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
>> डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
>> राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
>> नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
>> ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
>> द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
>> लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
>> मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
>> अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
>> ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
>> संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
>> बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
>> पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
>> थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
>> बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
>> उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
>> तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
>> बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
>> देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
>> 'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
>> भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
>> केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
>> करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
>> चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
>> परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
>> पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
>> ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
>> हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
>> भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
>> दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
>> कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
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Rajendra Mohan Sharma[Pipalwa]
B.Com. (Hons) LL.M.
Advocate Bombay High Court.
"Martand" 168, Shraddha Colony,
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service to mankind is service to god
RE: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
Kanpur
Date: Mon, 30 Dec 2013 11:22:11 +0530
From: dialogueindia.in@gmail.com
To: nationalnetworkforindia1@yahoogroups.com; indiaresists@lists.riseup.net; nbteamindia@gmail.com
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NUTAN VARSH ABHINANDAN.
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दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
---------------------------
Anuj Agarwal
National coordinator
Maulik Bharat
www.maulikbharat.org
Mob. : 9811424443
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Anuj Agrawal, Editor Dialogue India
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RE: [IAC#RG] URGENT PUBLIC GRIEVANCE :Notice of Death of consumer by Set Top Box
Mr. S. Roy
Any progress regarding complaint of Set top boxes to TRAI?
The cable operators are turnig a deaf ear on complaints regarding non functioning of boxes supplied by them
Regds
JKGaur
Date: Sat, 8 Jun 2013 13:19:02 +0530
From: sroy.mb@gmail.com
To: cp@trai.gov.in; advbcs@trai.gov.in; param.trai@gmail.com; indiaresists@lists.riseup.net
Subject: [IAC#RG] URGENT PUBLIC GRIEVANCE :Notice of Death of consumer by Set Top Box
To:
Dr. Rahul Khullar
Chairman, TRAI
BY EMAIL
08-June-2013
Respected Sir,
Sub: Death of subscriber due to shorting through Set Top Box
I am enclosing for your notice a digital clipping from 'Jagran' dated yesterday 07-June-2013 wherein a lady subscriber has died due to current received through Set Top Box shorting between the power line and the LCO cable signal line
As we, and many other persons, have regularly reported to you/TRAI , the MSOs are providing cheap sub-standard STBs (usually Chinese made) and usually with metallic conductive bodies which can pass lethal currents.
It is an open secret that in the rush for DAS digitisation from 1-April-2013 these machines of death are being forcibly installed to benefit a few media houses now substantially foreign controlled.
This disregard for BIS norms was also the direct subject of a PIL in the Supreme Court, brought by Master Swayamjit Roy (minor) and myself (TRAI was a Respondent) about 8 years back when CAS was similarly mandated, which PIL was withdrawn because the I&B Ministry withdrew CAS. We have leave from the Hon'ble Court to re-approach should our cause of action be revived.
I on behalf of India Against Corruption had also responded in detail to TRAI''s recent Consultation Paper in April for providing STBs on regulated tarriffs to consumers. However, it is curious that my detailed counter-comments to the MSO's submissions were not published by TRAI on the website to misrepresent that there is no opposition to TRAI.
Accordingly, I, on behalf of India Against Corruption people's movement, urge you to URGENTLY invoke TRAI's statutory powers in the public interest for consumer protection to ensure that suitable directions/regulations are issued to all concerned suppliers that only BIS/ISI marked STBs are supplied to the consumers. It is trite to say that this is a fit "Right to Life" case for TRAI's powers to be urgently invoked.
It is also pertinent to mention that from my private study not even 5% of the STBs in the market would meet BIS norms, and these are specially imported by the MSOs to install in residences of India''s creamy layer. I speculate that the deaths which shall occur henceforth from these Killer Boxes shall be mainly in the common classes which shall go un-mourned and unreported due to the media blackouts and active censorship put in place.
with best wishes
yours sincerely
(Er. Sarbajit Roy)
National Convenor
India Against Corruption, jan andolan
2nd floor B-59 Defence Colony
New Delhi 110024
Tel: 0931144869
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Monday, December 30, 2013
[IAC#RG] कैसे बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, जानिए पूरी कहानी! - लेखक : संदीप देव
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह 'राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद (एनएसी)' ने घोर सांप्रदायिक 'सांप्रदायिक और लक्ष्य
केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम' का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक
प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी
में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर 'परिवर्तन' नामक एनजीओ
से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी
तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो 'श्रीमान ईमानदार'
को कानूनन भ्रष्टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में 'परिवर्तन'
में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर
ब्रदर्स फंड' ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार
दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते
हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके। इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी
मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर
वर्ष 2005 में किया था।
अरविंद को समझने से पहले 'रेमॉन मेग्सेसाय' को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया
ब्यूरो 'सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)' अमेरिका की मशहूर कार
निर्माता कंपनी 'फोर्ड' द्वारा संचालित 'फोर्ड फाउंडेशन' एवं कई अन्य
फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी
राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद
केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में 'रेमॉन मेग्सेसाय' को
खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद
केजरीवाल की ही तरह 'रेमॉन मेग्सेसाय' का भी पूर्व का कोई राजनैतिक
इतिहास नहीं था। 'रेमॉन मेग्सेसाय' के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी
तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के
जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय 'छवि निर्माण' से लेकर उन्हें
'नॉसियोनालिस्टा पार्टी' का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए
करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की
निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी 'एडवर्ड लैंडस्ले'
ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए
एक साक्षात्कार में हुई।
ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा
गया और 'डर्टी ट्रिक्स' के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन
राष्ट्रपति 'क्वायरिनो' की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि
क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का
उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की 'गढ़ी गई ईमानदार छवि' और क्वायरिनो
की 'कुप्रचारित पतित छवि' ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत
दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद
केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का
जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए
गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।
उन्हीं 'रेमॉन मेग्सेसाय' के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष
में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों
को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्टाचार के नाम पर देश की
चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर
ब्रदर्स फंड' मिलकर अप्रैल 1957 से 'रेमॉन मेग्सेसाय' अवार्ड प्रदान कर
रही है। 'आम आदमी पार्टी' के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व 'आम
आदमी पार्टी' के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही 'रेमॉन मेग्सेसाय'
पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी 'फोर्ड फाउंडेशन'
के फंड से उनका एनजीओ 'कबीर' और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' मूवमेंट खड़ा हुआ
है।
भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग!
'फोर्ड फाउंडेशन' के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ''कबीर को
फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008
में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।'' यही नहीं, 'कबीर' को
'डच दूतावास' से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर
नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में
अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं
यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।
अंग्रेजी अखबार 'पॉयनियर' में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी
नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ 'हिवोस' के जरिए नरेंद्र मोदी की
गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्न भारतीय एनजीओ को अप्रैल
2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की
फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है।
'हिवोस' को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।
डच एनजीओ 'हिवोस' दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को
फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के
हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके
लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की
मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने 'पनोस' नामक
संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय 'पनोस' के करीब आधा
दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा
आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी
'पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है।
'सीएनएन-आईबीएन' व 'आईबीएन-7' चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई
'पॉपुलेशन काउंसिल' नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की
वही 'रॉकफेलर ब्रदर्स' करती है जो 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार के लिए
'फोर्ड फाउंडेशन' के साथ मिलकर फंडिंग करती है।
माना जा रहा है कि 'पनोस' और 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' की फंडिंग का ही यह
कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल 'सीएनएन-आईबीएन' व हिंदी
चैनल 'आईबीएन-7' न केवल अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ने' में सबसे आगे रहे हैं,
बल्कि 21 दिसंबर 2013 को 'इंडियन ऑफ द ईयर' का पुरस्कार भी उसे प्रदान
किया है। 'इंडियन ऑफ द ईयर' के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी 'जीएमआर'
भ्रष्टाचार में में घिरी है।
'जीएमआर' के स्वामित्व वाली 'डायल' कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में
इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार
से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 'सीएजी' ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश
अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण
सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं,
रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने
अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया
था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्टाचार में शामिल होने का
दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय
मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों
ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ा' है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता
चलेगा।
'जनलोकपाल आंदोलन' से 'आम आदमी पार्टी' तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में
अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए
'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का नारा देते हुए वर्ष 2011 में 'जनलोकपाल
आंदोलन' की रूप रेखा खिंची। इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग
किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी
रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के
सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने
वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में 'लॉंच'
कर दिया। अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त
लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद 'कांग्रेस पार्टी व
विदेशी फंडेड मीडिया' के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल
आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, 'आम आदमी
पार्टी' के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद
केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।
विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद
केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे
को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली
यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी
स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के
कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।
आगे बढ़ते हैं…! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी
फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी
अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी 'आम आदमी पार्टी' खड़ा करने में
सफल रहे। जनलोकपाल आंदोलन के पीछे 'फोर्ड फाउंडेशन' के फंड को लेकर जब
सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय
के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से 'कबीर' व उसकी फंडिंग का
पूरा ब्यौरा ही हटा दिया। लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31
अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने 'बिजनस स्टैंडर'
अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड
फाउंडेशन ने 'कबीर' को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है।
स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से
बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ
गया।
सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था 'आवाज' की ओर से भी अरविंद
केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी
'आवाज' ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की 'आम
आदमी पार्टी' को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में
सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी 'आवाज' संस्था ने वहां के
एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को
बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के
लिए अमेरिकी संस्था जिस 'फंडिंग का खेल' खेल खेलती आई हैं, भारत में
अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और 'आम आदमी पार्टी' उसी की देन हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया
के एनजीओ व उनकी 'आम आदमी पार्टी' में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी
फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी
है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय
गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र
सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि
'फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010' के मुताबिक विदेशी धन पाने के
लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च
करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी
देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों
को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन
अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा
रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली
कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने
राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
अमेरिकी 'कल्चरल कोल्ड वार' के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका
व उसकी खुफिया एजेंसी 'सीआईए' की नीति को 'कल्चरल कोल्ड वार' का नाम दिया
गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति व उसके लोकतंत्र को अपने
वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे
जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से
प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने
'सेक्यूलरिज्म' के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से 'भारत माता' की
तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को
'सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का' समझा जाता है, इसलिए वामपंथी
बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता
साबित करने में सफल रही।
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और 'आम
आदमी पार्टी' के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह
कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद
हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया
कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं,
बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?
प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी
बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को 'क्रांतिकारी सेक्यूलर दल' के रूप में
प्रचारित करने लगी। प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र
सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह
दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट
हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी
कश्मीर में हावी हो जाएंगे।
अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान
के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र
स्थापित कर सके। यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर
नजर रखने में उसे आसानी होगी। आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण
अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही
करते रहे हैं और अब जब उनकी 'अपनी राजनैतिक पार्टी' हो गई है तो वह इसे
राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से 'लिटमस टेस्ट'
था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी 'ईमानदारी' और 'छद्म धर्मनिरपेक्षता' का
'कॉकटेल' तैयार कर रही थी।
8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें
जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी
द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला
गया, वह काफी हद तक इस 'कॉकटेल' का ही परीक्षण है। सवाल उठने लगा है कि
यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत
संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके 'एसएमएस कैंपेन' की पारदर्शिता ही कितनी
है? अन्ना हजारे भी एसएमएस कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी
पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला
हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस कार्ड के
नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा,
''मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस
कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो
मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।''
प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके 'पंजीकृत आम आदमी'
ने जब देखा कि 'भारत माता' के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे
वक्तव्य पर 'मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल' शुरू हो चुका है तो
उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को
मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, 'इस देश में हिंदू
आतंकवाद चरम पर है', तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा
कि 'बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष
थे।' इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में
दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के
मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।
याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते
हुए कह चुके हैं कि 'हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट
हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।' उन पर कई आपराधिक
मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली
पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर
सके। वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर
कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों
के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी
लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय
फतवा भी जारी कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया 'आखिरी पत्ता' हैं अरविंद!
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व
क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने
की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित
में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली
क्षेत्रीय पार्टियों के हित में। मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया
केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के
अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल
यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्टाचार को रोकने के नाम पर
जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर 'आम
आदमी पार्टी' का निर्माण कराया गया है।
दिल्ली में भ्रष्टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला
दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास
सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से 'आम आदमी
पार्टी' की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को
रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार
बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ''भाजपा के
पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई।
हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और
सरकार भी बना ली।''
कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी
'आम आदमी पार्टी' को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर
कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप
दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना
आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को
सौंपी थी। 'फोर्ड फाउंडेशन' ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख
69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड
उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने
शीला-संदीप का 'ब्रेन चाइल्ड' बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा
पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।
'आम आदमी पार्टी' व उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस
पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने 'मेल
टुडे' अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद
में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़
लिया और 'मेल टुडे' अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। 'मेल टुडे' से जुड़े
सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर 'टुडे ग्रुप' ने
भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र
मोदी को रोकने लिए 'कांग्रेस-केजरी' गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश
हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण
'मेल टुडे' के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी,
इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें
नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित 'आम आदमी पार्टी' की असलियत का पूरा
ब्यौरा है।
शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार 'मेल टुडे' में लिखा
था, ''अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर
भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला। वहीं
खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों
को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन
कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के
आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की
कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की
मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे
जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।''
''आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस
राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का
फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की
महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को
दरकिनार करते हुए 'आम आदमी पार्टी' के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों
बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने जानबूझ कर
शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्टाचार की बात उठाई और उन्हें
कांग्रेस के भ्रष्ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार
व सेक्यूलर दिखा सकें। एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम
खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके
भ्रष्टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?''
''बीजेपी 'आम आदमी पार्टी' को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब
फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से
चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का
इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और
भ्रष्टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी
मढ़ दिया। ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।''
''दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में
आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस
का मतलब सिर्फ भ्रष्टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की
कारगुजारियों की वजह से भ्रष्टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी
हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और
अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना
वक्त गंवाए निबटाना होगा।''
''मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है। नरेंद्र मोदी
इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने
और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। मगर केजरीवाल
गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं। केजरीवाल की प्राथमिकता देश की
राजनीति को अस्थिर करना और नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो केजरीवाल की दुकान
हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।''
लेखक : संदीप देव
Re: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
Respected Friends
NUTAN VARSH ABHINANDAN.
An analysis on AAP.
If you find justified. please read, react and disseminate.
दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
---------------------------
Anuj Agarwal
National coordinator
Maulik Bharat
www.maulikbharat.org
Mob. : 9811424443
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दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
कांग्रेस पार्टी को कोई रोक नहीं सकता।
---------------------------
Anuj Agarwal
National coordinator
Maulik Bharat
http://www.maulikbharat.org/
Mob. : 9811424443
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Anuj Agrawal, Editor Dialogue India
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Re: [IAC#RG] An analysis on AAP KA UDAI By Anuj Agarwal , shelli Kaslee and Arun Tiwari
Respected Friends
NUTAN VARSH ABHINANDAN.
An analysis on AAP.
If you find justified. please read, react and disseminate.
दो सभ्यताओं का संघर्ष
च विधानसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत
गहरे मायने रखती है। यह देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते उफान का संकेत है।
जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा की राजनीति का अगला क्रम राष्ट्रवाद ही होता
है और अब इन मुद्दों के सहारे राजनीति के धंधेबाजों की दुकानें सिमटने का
समय आता जा रहा है। निश्चय ही अभी इसमें कुछ और वर्ष लगेंगे। कांग्रेस
पार्टी द्वारा मानवतावाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद के नाम पर संकीर्ण सोच के
दायरे में जीने पर मजबूर किये जा रहे भारतीयों में इन मुद्दों का खोखलापन
समझ में आता जा रहा है। विकसित देशों द्वारा अपने हितों व अपने बाजार को
भारत में बनाये रखने के लिए नित नयी-नयी साजिशें रची जाती हैं। कांग्रेस
पार्टी एवं कई क्षेत्रीय दलों से इनकी खासी गलबहियां हैं। पिछले दस
वर्षों की अनवरत लूट व भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इन्हीं शक्तियों ने
'जनलोकपाल, 'आम आदमी पार्टी एवं नारी उत्पीडऩ जैसे आंदोलनों, दल व
मुद्दों को भड़काया एवं जनता को भ्रमित करने की कोशिश की है। वस्तुत: यह
दो सभ्यताओं का संघर्ष है जिसमें एक ओर भाजपा एवं संघ परिवार है तो दूसरी
ओर कांग्रेस पार्टी, वामपंथ एवं पश्चिमी बाजारू ताकतें हैं। अब यह विभाजन
स्पष्ट हो चुका है।
पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी कुटिलता से संघ परिवार
को अपने फंदे में जकड़कर इनके आंदोलन को बिखेरने की कोशिश की है। अनेक
संघ के नेताओं को हिन्दू सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर घेरे में लिया
तो अनेक भाजपा नेताओं को घोटालों व भ्रष्टाचार के मुद्दों पर घेरकर
निस्तेज करने की साजिश की। भाजपा के अनेक असंतुष्ट मुद्दों को भड़काकर
पार्टी में विद्रोह की अनेक कोशिशों को अंजाम दिया गया और अनेक जगह भाजपा
की सरकारों को गिराने व हराने के षड्यंत्र रचे गये। कहीं न कहीं कांग्रेस
पार्टी लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली जैसे भाजपा के
शीर्ष नेतृत्प को घेरकर रोके रखने में सफल हुई और इसी कारण पिछले दस
वर्षों में भाजपा अपने विस्तार व प्रभाव के साथ-साथ मुद्दों से भटकती नजर
आई और संघ परिवार भी अपनी कमजोरियों का शिकार होकर बिखराव का शिकार होता
गया।
कांग्रेस पार्टी की नजर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थी
और इस क्रम में वह कर्नाटक, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व झारखंड में
भाजपा की कमजोरियों को भुनाकर सरकार बनाने में सफल रही। बिखरते टूटते
भाजपा व संघ परिवार के लिए नरेंद्र मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व एवं उनकी
प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए दावेदारी की स्वीकृति अमृत के समान
सिद्ध हो गयी। मोदी के बढ़ते कद, जन स्वीकार्यता एवं प्रभाव ने यकायक कुछ
ही महीनों में भाजपा को पुन: दौड़ में खड़ा कर दिया और गुजरात,
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों के शानदार शासन में
तीसरी बार जनता के विश्वास व्यक्त करने के कारण कांग्रेस पार्टी बिखराव
के दौर में आकर अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के निकट खड़ी है। चिंता
कांग्रेस पार्टी से जुड़े धनपतियों, बुद्धिजीवी वर्ग, लेखकों, कलाकारों,
पत्रकारों, एक्टिविस्ट लोगों व एनजीओं गैंग को है। चूंकि उनकी दुकानें
बंद होने वाली है। ऐसे में इस वर्ग के लोगों द्वारा सोनिया-मनमोहन के
सत्ता संघर्ष व घोटालों के 'सेफ्टीवाल्व अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल,
जिनका प्रयोग भ्रम की राजनीति के तहत 'जनलोकपाल आंदोलन के लिए किया गया
था, की विश्वसनीयता का पुन: प्रयोग किया जा रहा है। दिल्ली में अपनी हार
निश्चित जानकर अनेक कांग्रेसी नेताओं ने अपने समर्थकों से आआपा को वोट
दिलाया। मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर आआपा के पक्ष में हवा बनाना एवं
आआपा की उपलब्ध्यिों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना तथा अन्ना का इस्तेमाल कर
'लोकपाल विधेयक को पुन: चर्चा में लाकर भाजपा की जीत, तेलगांना, पार्टी
की हार एवं छूटते सहयोगियों के मुद्दे से ध्यान हटाने की हर संभव कोशिश
करना रणनीति के तहत है।
कांग्रेस पार्टी एवं उसके समर्थक 'मीडिया एवं एनजीओ की कोशिश है कि
'केजरीवालको सुशासन, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्षशील नायक
आदि के रूप में मोदी के समानान्तर पेश किया जाये और किसी हद तक मोदी के
पक्ष में बहती हवा को मंद किया जाये। किंतु देश 'दिल्ली नहीं है। भाजपा
की लगातार बढ़त व लोकप्रियता, उसके मुख्यमंत्रियों का तीसरी बार चुना
जाना कहीं न कहीं उनके उसी 'सुशासन पर जनता की मुहर है जिसका दावा
केजरीवाल कर रहे हैं, किंतु प्रयोग में अभी तक कुछ भी करके नहीं दिखा
पाये हैं।
मुख्य मुद्दे भारतीयता, स्वसंस्कृति, स्वदेशी एवं रोजगार और
भारतीयोंं के आत्मगौरव व स्वाभिमान के हैं जो भारतीय जनता पार्टी की
विचारधारा के मूल तत्व है। इन मुद्दों पर केजरीवाल कहीं न कहीं कांग्रेसी
विचारधारा की गोदी में बैठे दिखते हैं। निश्चित रूप से 'भारत तत्व की खोज
भाजपा व संघ परिवार के दर्शन में तो खोजी जा सकती है, बाकी दलों में इसका
मिलना मुश्किल होता जा रहा है। परिवर्तन लोकतंत्र या आवश्यकता है तो आने
वाले लोकसभा चुनाव में जनता क्यों न संघ परिवार पर दांव लगाये?
आप की नैया - कांग्रेस खिवैया
लोकसभा चुनावों में अपनी हार, बिखराव व टूट से पहले कांग्रेस पार्टी अपने
संभावित विकल्प एनडीए की राह में अधिकतम रोड़े बिखेरने पर आमादा है। आआपा
पार्टी की दिल्ली में सरकार, फर्जी लोकपाल कानून और भारतीय राजनयिक
देवयानी के प्रकरण में अमेरिका से तकरार अकस्मात नहीं है। कांग्रेस के
डूबते जहाज पर सवार 'तोडफ़ोड़ व प्रपंच की राजनीति के रणनीतिकार चार
राज्यों में अपनी हार सुनिश्चित जानकर विधनसभा चुनावों के बाद के
नकारात्मक परिदृश्य को भ्रम व भटकाव की राजनीति में बदलने की योजना पहले
ही गढ़ चुके थे। दिल्ली चुनावों में अंतिम समय में कांग्रेसी नेताओं
द्वारा गुपचुप तरीके से आआपा को समर्थन, अन्ना के अनशन का 'फिक्स गेम व
लोकपाल बिल और देवयानी का मसला सब पहले से निर्धरित खेल थे जिससे भाजपा व
मोदी की जीत एवं कांग्रेस व राहुल की शर्मनाक हार चर्चा में न आ सके।
अपने अति उत्साही व जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी कांग्रेसी रणनीतिकारों
ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूबा दी और उखड़े खूंटो को
संभालती, खीजती-खिसियाती कांग्रेस, जहाँ 'आम आदमी पार्टी को अपनी 'बी टीम
बनाकर अपनी सरकार दोबारा बनाने पर आमादा थी, वहीं वह अब उल्टे 'आम आदमी
पार्टी की 'बी टीम बन बैठी है। प्रेस मीडिया, कारपोरेट घरानों, अमेरिकी
थिंक टैंक (फोर्ड फाउंडेशन व सीआईए) और मनमोहन सिंह के 'चंडीगढ़ क्लब की
बदौलत 'सेफ्टी वाल्व थ्योरी के तहत घोटालों से जनता का ध्यान हटाने व
उलझाने का ठेका उठाकर केजरीवाल टीम ने दिल्ली में सरकार बनाने में सफलता
तो पा ली है किन्तु इससे देश में व्यवस्था परिवर्तन के बड़े आंदोलनों को
बिखेरने के षड्यंत्र करने के जुर्म से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
देर-सबेर देश की जनता उनसे हिसाब मांगेगी। 'क्रोनी कैपिटलिज्म एवं
'कारपोरेट अराजकता के मेल से निकली उनकी 'आम आदमी पार्टी व उसकी सरकार एक
भ्रम और धोखा ही साबित होनी है और 2014 इसका गवाह बनेगा।
केजरीवाल को मोदी के समक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े
करने की अमेरिकी साजिश को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि उनकी लोकसभा
चुनावों में दावेदारी पुन: एनडीए के वोट काटने का षड्यंत्र ही है, जिसके
परिणाम त्रिशंकू लोकसभा के रूप में सामने आयेंगे और इस खेल के सफल होने
पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी व अमेरिका ही मुस्करा रहे होंगे।
ईश्वर देश की जनता को धोखा देने की कोशिश करने वालों को सद्बुद्धि दे।
हाँ जनकेन्द्रित शासन की कमियाँ व भ्रष्टाचार के प्रति उदासीन रवैया,
भाजपा को भी छोडऩा होगा, तभी वह लोकसभा चुनावों में सरकार बनाने की सच्ची
दावेदार बन सकती है, नहीं तो तीसरे मोर्चे की सहायता से सत्ता में आने से
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[IAC#RG] Submissions for "net metering" of solar PV systems
The Secretary, DERC
30.12.2013
Dear Madam,
This brief response is filed / submitted by undersigned on behalf of
"India Against Corruption" (IAC) to the proposal for net metering and
connectivity for solar roof mounted PV projects.
1) The IAC OBJECTS to the said proposals. It is clear that these
proposals have been drafted to suit some commercial vested interests
(whose identities are presently unclear).
2) IAC has reason to suspect that DERC's proposals / approvals shall
be used by these vested interests to raise money directly / indirectly
from the public by making all sorts of tall claims and giving rosy
promises. In other words to promote PONZI schemes to take advantage of
the taxation and depreciation benefits available to the "owner" of the
PV systems.
3) The IAC, however, supports Solar Power generation by private
persons for their own consumption / usage.
4) The IAC objects that there is insufficient data / research at
present as to how environmentally friendly Solar Power is if all
aspects of its manufacturing and life cycles are considered. The
undersigned has worked on several such installations and the output is
greatly variable with respect to "cloud factor" and night-time use,
without storage battery banks to smoothen the inverter outputs.
5) The IAC apprehends that such regulatory approvals will be used for
"havala" and money laundering rackets on a large scale.
6) The IAC apprehends and objects that this policy shall only benefit
large property owners / lessees (such as GMR-DIAL, DMRC, Mall owners
etc ) and not the common man.
Accordingly IAC requests to be heard in person and make additional submissions.
yours faithfully
Er. Sarbajit Roy
National Convenor
India Against Corruption, jan andolan
www.indiaagainstcorruption.org.in
B-59 Defence Colony
New Delhi 110024
Sunday, December 29, 2013
RE: [IAC#RG] The beginning of the end for AAP
Sq.Leader Dutt appaers to be as innocent as a cuckoo.As Virginia Woolf put it "Marvelous are the innocent. " .
Kejriwal came riding piggy back on an old crusadrer Anna Hazare and then ditched himto form a political party with him as the head.He then used the corruption and maladministration of the Congress to make AAP become the second largest party.Next he did the unbelievable,accepting Congress support to form the Government. Now people who wanted the corrupt Congress out are baffled.Rather he helped Congress as otherwise all his votes would have gone to BJP and UPA would have been paying dearly for its misdeeds.
That makes Kejriwal suspect in the eyes of people like me.Many have earlier accused him a as Sonia's poodle.As IRS officers,with whose patronage did he and his wife manage to remain in Delhi for more than 20 years?Is it not a fact that Sonia Gandhi send a recommendation sometime in the past to retain him in Delhi.
AAP is a misfit in the present political system.Instead of banking on AAP,people should find otherways to throw the Congress is thrown into the dustbin by any means.As far as Delhi is concerned,AAP's so called win(they did not have the majority) is only a passing phase.One swallow does not make a spring.
AAP will end up as the greatest hox played on the people by any political party.
From: sroy.mb@gmail.com
To: indiaresists@lists.riseup.net
Subject: Re: [IAC#RG] The beginning of the end for AAP
Dear Capt Datt
Did you ask Ramdev who the fuck he was before you mindless fools supported him ?
Did you ask Anna how many wives he has before you extended him your
love (and money) ?
Did you ask Arvind how many crores he has swallowed from CIA in the
past few years before you praised him to us?
If you haven't, then you have absolutely no business to ask our
antecedents. Unlike them we have not asked you for even a single
paise, and neither have we asked you to desecrate our national
emblems, songs and symbols.
PS: The only reason we "sift" emails is because we get so many of
them. And yet we strive to ensure that the "sense" of all points of
view (even if it is not "your" email) gets communicated to our
members.
You obviously know nothing about AAP and are just mindlessly repeating
the nonsense they brainwash you worker drones with.
AAP works on the same MLM principles as Amway, Reverend Moon or
ISKCON. More fool you.
Do deprogram yourself (while you still can) by reading this
http://emilkirkegaard.dk/en/wp-content/uploads/Freakonomics-expanded.pdf
especially the Chapter at p. 79 "Why do Drug dealers still live with
their Moms ?")
Sarbajit
On 12/28/13, Sn Datt <captsndatt@gmail.com> wrote:
> All anti AAP rhetoric from IAC must cease forthwith. What are the
> antecedents of the IAC leaders.
> You sift mails and publish only your views.
> I firmly support AAP. They will reshape this country and bring hoe and
> optimism back.
> ANNA is great man but has been mislead. If AAP had not trounced congress
> there would have been no Lokpal. The political parties would not have
> bothered about his fast.
> Suggest join Kejriwal and accelerate the transition
>
> Sqn ldr sn datt retd
Post: "indiaresists@lists.riseup.net" Exit: "indiaresists-unsubscribe@lists.riseup.net" Quit: "https://lists.riseup.net/www/signoff/indiaresists" Help: https://help.riseup.net/en/list-user WWW : http://indiaagainstcorruption.net.in